गुरुमंत्र की शक्ति







श्री सुरेन्द्रनाथ ‘आजाद’ ने एक दिन पूज्य देवराहा बाबा से जिज्ञासा की- ‘गुरूजी, अगर मैं किसी संकट में फँस जाऊं, तो क्या आपके द्वारा प्रदत्त गुरुमंत्र से मेरी रक्षा हो सकती है ?’ श्री बाबा ने सांत्वना देते हुए कहा- “बच्चा, तत्काल ही शिष्य की सहायता करने मैं वहाँ पहुँच कर उसकी रक्षा करता हूँ |” संयोगवश श्री आजाद सन १९५९ में बीमार पड़े | डाक्टरों का इलाज दो माह तक लगातार चला किन्तु दवा-दारू से कोई लाभ नहीं हुआ | रोग बढ़ता ही गया | वह काशी के हबीबपुर मोहल्ले में किराय के मकान में रहते थे | उसके पडोसी नन्हें मियां नजूमी एक तांत्रिक थे और दिन-रात लोगों की भीड़ उनके यहाँ लगी रहती थी | लोग उनसे तंत्र-मंत्र कराकर अपने काम की सिद्धि कराते थे | ऐसे लोग तो पैसों के लोभी होते हैं | उनसे कोई भी जघन्य काम प्रलोभन देकर कराया जा सकता है | सुरेन्द्र नाथ के घर के बैरी ने उनपर जादू करा दिया ताकि आजाद काल-कवलित हो जाएँ और उनके घर का सारा सामान हथियाया जा सके | इसकी जानकारी बेचारे आजाद को नहीं थी | वे जानते भी कैसे ? तांत्रिकों का प्रहार तो अशरीरी माध्यमों के द्वारा होता है | उन्हें नजूमी पर विश्वास भी नहीं था | गुरुदेव के बताये मार्ग का अवलंब करने से ही उनके मार्ग की सारी बाधाएं दूर हो जाती थीं | देवराहा बाबा अप्रैल मई के महीने में लगभग हर वर्ष काशी आते और प्रायः अस्सी घाट के उस पार रामनगर की तरफ गंगा में ही मचान डलवाकर रहते | आजाद बाबा के दर्शनों में परिवार सहित ही जाते | उस बार उनके मन में रह रहकर यह चिंता सवार होती थी कि वे कैसे महाराज की सेवा में उपस्थित हो सकेंगे ? रोग से बढ़ती कमजोरी ने उन्हें निढाल कर दिया था | यह चिंता उन्हें सालती रहती | ‘अच्छा ! जैसी गुरुदेव की मर्ज़ी !’ सोचकर वे धीरज धारण करते | एक रात उन्होंने आँगन में खाट डलवा ली और सोने का उपक्रम करने लगे | नींद नहीं आ रही थी | करवटें बदल रहे थे | रात सरकती जा रही थी | आधी रात के समय एक बड़ा भयावह दृश्य उनकी दृष्टि के सामने आया | अचानक उन्हें लगा कि एक विशालकाय भयानक आकृति उनकी ओर बढ़ती आ रही है | उसकी आँखें हिंसा की आग से जल रही थीं | उसकी उंगलियां आजाद की गर्दन की ओर बढ़ रही थीं ताकि वह गला टीप कर उन्हें मार डाले | आजाद की देह में झुरझुरी दौड़ गई | यह दुर्दांत नट तो आज मार ही डालेगा | इसी समय उनकी नज़र कुछ अन्य आकृतियों पर पड़ी जो उस नट का विरोध कर रहीं थीं | वे स्तंभित रह गए उन आकृतियों को पहचान कर | वे उनके पूर्वज थे जो नट से उसकी रक्षा करने का प्रयत्न कर रहे थे | किन्तु उनकी एक नहीं चल रही थी | वह नट बड़ा बलवान था और मार मार कर पूर्वजों को हटा देता था | उन्हें हटाकर वह आगे बढ़ता और वे आकृतियाँ फिर बचाव की कोशिश करतीं | इसी समय सुरेन्द्रनाथ आजाद के दिमाग में बाबा का दिया गुरुमंत्र बिजली की तरह कौंध गया और उसे उन्होंने मन-ही-मन जप लिया और गुरुदेव से प्रार्थना की | मंत्र जप और प्रार्थना का फल तत्क्षण नज़र आया | उसी क्षण जटा-जूट मण्डित श्री देवराहा बाबा हाथ में चिमटा लिये वहाँ प्रकट हुए | उनके प्रकट होते ही नट सहम गया किन्तु फिर भी अपने प्रयत्न से बाज़ नहीं आया | जैसे ही वह हाथ बढ़ाता; बाबा उसे चिमटा से मार देते | उस नट को बाबा ने तीन बार चिमटे से मारा | तीसरी बार चोट लगते ही वह नट धराशायी हो गया और देखते देखते जलकर भस्म हो गया | उसके जलते ही महाराज देवराहा बाबा की आकृति भी वहाँ से अंतर्धान हो गयी | प्रातःकाल उठकर आजाद चबूतरे पर आये तो पडोसी नन्हें मियां नजूमी आ धमके | सलाम करने के बाद वे बार-बार अलविदा लेने लगे- ‘गार्ड साहब, मुझे माफ करें. आप एक महान व्यक्ति हैं | मुझसे भूल हो गई | अब मैं शाम तक दुनिया से बिदा ले लूँगा | अलविदा | मुझे ज़रूर माफ कर देंगे |’ आजाद को बात समझ में नहीं आई | आखिर नन्हें मियां काहे के लिये क्षमा माँग रहे हैं ? कौन सा अपराध बन पड़ा है उनसे ? वे कुछ बोले नहीं | नन्हें मियां भी माफ़ी की अर्जी देकर चले गए | धीरे-धीरे दिन बीतने लगा और शाम हो गयी | संध्या होते ही उस मियां नजूमी को तीन कहूँ की कै हुई और उसने दम तोड़ दिया | उसके इंतकाल की खबर पाते ही रात का स्वप्न प्रत्यक्ष हो गया | बेचारे का इष्ट ही जलकर खाक हो गया और सारी शक्ति उसी के साथ चली गयी | बेचारा नन्हें मियां क्या करता जीकर- उसे मरना ही पड़ा | गुरुमंत्र में अपार शक्ति होती है | वह शक्ति केन्द्र है | चिन्मय शक्ति है | श्री बाबा का यह कथन अक्षरशः सत्य है |

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